प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम पंथकमल तन्तु सो छीन, अरु कठिन खडग को धार। पर साथ ही- कबहुँ न जा पथ भ्रम तिमिर, रहै सदा सुख चंद। अविद्याजनित भ्रमान्धकार इस मार्ग में नहीं है। यहाँ तो सदैव सुख सुधाकर की आनन्द चंद्रिका फैली रहती है। इसमें संदेह नहीं कि यह पथ अतिशय आनन्ददायी है। पर इसे पाना सुगम नहीं। महाकठिन साधना है। मोम के घोड़े पर चढ़कर आग के अंदर हो निकल जाने के समान इस पर चलना है। यह काम क्या हर कोई कर सकेगा? ‘रहिमन’ मैन तुरंग चढ़ि, चलिबो पावक माहिं। अपने ‘इश्कनामा’ में विरही प्रेम पंथ की लाजवाब तसबीर खींची है। आखिर यह पंथ है क्या? इस पर चलना क्या कोई भारी बला है! क्या पूछते हो, भाई, बहुत ही बारीक और कोमल कमल के तार पर पैर रखकर क्या तुम आ सकोगे! सुई के छेद से बी तंग दरवाजे से होकर क्या प्रीति का टाँड़ा लादे हुए निकल आओगे! नेजे से भी तेज नोक पर चढ़कर अपने चित्त को डिगाओगे तो नहीं! जो इतना सब करने को राजी हो, तो प्रेम की इस महाकराल तलवार की धार पर तुम खुशी से दौड़ सकते हो- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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