प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम प्यालाजितना यह मद्य पिया जाय, पी लो। प्याले पर प्याला ढालते जाओ। ऐसा सुअवसर बार बार नहीं मिला करता। अहा! कैसा मजेदार प्याला है! अंत में, कविवर देव के साथ साथक सुरति कलारी के हाथ से एक प्याला लेने को हमारा भी मन अधीर हो रहा है- मधुरतें मधुर, मधु रसहू बिधुर करै, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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