प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 118

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम प्याला

स्वर्ग की भी तो एक प्रकार की सुरा सुनने में आती है। अजी, वह कुछ नहीं है। कर्मकाण्डियों की कोरी कल्पनामात्र है। बेचारे उससे अपना थका माँदा मन बहला लेते हैं, न खुद ही उसे पी पाते हैं, न किसी को पिला ही सकते हैं। गालिब ने एक कर्मकाण्ड को कैसा लज्जित किया है-

वाइज़, न तुम पियो, न किसी को पिला सको,
क्या बात है तुम्हारी शराबे तहूर की।

शराबे तहूर की, स्वर्ग सुरा की यह दशा है! एक बार भी इन नीरस कर्मकाण्डियों को हमारी प्रेम मदिरा का स्वाद मिल गया होता, तो फिर ये अपनी कल्पित स्वर्गसुर का कभी प्रसंग ही न छेड़ते। इसलिए इन कर्मठ रोगियों की दवा प्रेम प्याला ही है। इनमें से कोई पूछे तो बता देना कि थोड़ी सी प्रेम मदिरा पी लो, नीरसता का असाध्य रोग दूर हो जायेगा-

जो पूछे जाहिदे खुश्क अपनी दारू, कह दो, मैं पी ले।। - जाक

बस, प्रेम प्याले में ही एक ऐसा मद्य भरा हुआ है, जो इस नीरस जीवन क रसमय बना देता है। और, रस ही तो इस लोक और उस लोक का एकमात्र सार है-

एहि जग माहँ एक रस सारा। रस बिनु छूछ सकल संसारा।। - उसमान

वह आत्म रस प्रेम प्याले में ही तुम्हें घुला मिलेगा। इससे भाई! हम तो बार बार हरिश्चंद्र के स्वर में स्वर मिलाकर यही कहेंगे कि-

पी प्रेम पियाला भर भरकर कुछ इस मैका भी देख मजा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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