प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम प्यालाबस, एक ही प्याला चाहिए, गुरुदेव! एक ही प्याला। साकी, हाथ जोड़ता हूँ, तेरे पैरों पड़ता हूँ। दया करके एक प्याला दे दे। क्या पूछा कि प्याले लेकर क्या करेगा? तेरी दी हुई प्रेम सुरा को पीकर उसीक मस्ती में एक खेल खेलूँगा। तेरे मदिरालय में, तेरे मयखाने में न जाने कितने प्रेम योगियों ने वह खेल खेला है। मैं भी एक कन्थासी लूँगा और उसे कंधे पर डालकर योग जगाऊंगा। योग धारण कर मैं अपने बनाये संसार का प्रलय करना चाहता हूँ। योगी बनकर मैं उस देश को जाऊँगा, जो मेरे प्रियतम का ठौर है। इस देश में रहना अब मुझे तनिक भी नहीं भाता। एक एक पल एक एक वर्ष सा बीत रहा है। जहाँ वह मेरा ‘प्राण’ बसता है वहीं जाने को अब छटपटा रहा हूँ। सो, साक़ी! एक प्याला भरकर दे दे- दे मदिरा भर प्याल पीवों। होइ मतवार काँथरा सीवों।। जो कुछ भी दाम तू एक प्याले का लेना चाहेगा, मैं खुशी खुशी दे दूँगा। अपना प्यारा मन भी मैं हँसते हँसते सौंप दूँगा। तेरे इस पवित्र मदिरालय को मैं अपनी पलकों से बुहार दूँगा। सो, अब तो दया कर, मेरे प्यारे साकी! एक पियाला भर मद दीजै। मोल पियारो मानस लीजै।। साकी, इस तरह का कोई प्याला पिला दे कि जिसके पीते ही मेरा निठुर ‘साईं’ मुझे चाहने लगे- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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