प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 116

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम प्याला

बस, एक ही प्याला चाहिए, गुरुदेव! एक ही प्याला। साकी, हाथ जोड़ता हूँ, तेरे पैरों पड़ता हूँ। दया करके एक प्याला दे दे। क्या पूछा कि प्याले लेकर क्या करेगा? तेरी दी हुई प्रेम सुरा को पीकर उसीक मस्ती में एक खेल खेलूँगा। तेरे मदिरालय में, तेरे मयखाने में न जाने कितने प्रेम योगियों ने वह खेल खेला है। मैं भी एक कन्थासी लूँगा और उसे कंधे पर डालकर योग जगाऊंगा। योग धारण कर मैं अपने बनाये संसार का प्रलय करना चाहता हूँ। योगी बनकर मैं उस देश को जाऊँगा, जो मेरे प्रियतम का ठौर है। इस देश में रहना अब मुझे तनिक भी नहीं भाता। एक एक पल एक एक वर्ष सा बीत रहा है। जहाँ वह मेरा ‘प्राण’ बसता है वहीं जाने को अब छटपटा रहा हूँ। सो, साक़ी! एक प्याला भरकर दे दे-

दे मदिरा भर प्याल पीवों। होइ मतवार काँथरा सीवों।।
सो काँथर काँधे पर डारउँ। जोगी होइ जग चाहत मारउँ।।
होइ जोगी तेहि देसहि जाऊँ। है जेहि देस सुप्रीतम ठाऊँ।।
मोहि यद देस न भावत, छन है बरस समान।
अब तेहि देस सिधारऊँ जहाँ रहत वह प्रान।।- नूरमुहम्मद

जो कुछ भी दाम तू एक प्याले का लेना चाहेगा, मैं खुशी खुशी दे दूँगा। अपना प्यारा मन भी मैं हँसते हँसते सौंप दूँगा। तेरे इस पवित्र मदिरालय को मैं अपनी पलकों से बुहार दूँगा। सो, अब तो दया कर, मेरे प्यारे साकी!

एक पियाला भर मद दीजै। मोल पियारो मानस लीजै।।
पियउँ सुरा सब चिन्ता मारऊँ। पलकनसों मद सदन बोहारउँ।। - नूरमुहम्मद

साकी, इस तरह का कोई प्याला पिला दे कि जिसके पीते ही मेरा निठुर ‘साईं’ मुझे चाहने लगे-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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