श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
57. अश्वमेध-यज्ञ
'आपका वरदान व्यर्थ हो गया।' अपनी राजधानी में जाकर इन्द्रनील अपने आराध्य भगवान शंकर की आराधना में लग गये थे। उन परम शैव के सम्मुख जब आशुतोष प्रकट हुए तो राजा का आक्रोश प्रकट हुआ- 'आपकी प्रदान की शक्ति भी कुण्ठित होती है?' 'मैंने तुम्हें देवता, दैत्य तथा मानवों से अभय दिया था।' भगवान गंगाधर ने कहा- 'तुम परमपुरुष से ही भिड़ जाओगे इतना अज्ञ तो मैं तुम्हें नहीं जानता था। 'परमपुरुष?' इन्द्रनील चकित हो गये। 'श्रीकृष्णचन्द्र साक्षात परमपुरुष हैं उनसे अभिन्न ही है उनका चतुर्व्यूह रूप। संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध उन वासुदेव के ही स्वरूप है।' विश्वनाथ ने समझाया- 'तुम उन पुरुषोत्तम अनिरुद्ध की अर्चा का सौभाग्य प्राप्त करो अश्व देकर। उनके द्वारा युद्ध में पराजय तो स्वयं मेरे लिये भी कोई अपमान की बात नहीं है।' इन्द्रनील अश्व तथा उपहार लिये नगर से निकले। अनिरुद्ध ने उनकी पूजा स्वीकार की और उन्हें पुत्र को राज्यभार देकर अश्वरक्षक दल में सम्मिलित होना पड़ा क्योंकि यह नियम सर्वमान्य था कि अश्व को पकड़ने वाले नरेश को पराजित होने के पश्चात उत्तराधिकारी को राज्य देकर अश्व-रक्षक बनना पड़ता है। उशीनर देश के नरेश राजा हेमाङ्गद को अपनी राजधानी चम्पापुरी को अलंघ्य दुर्ग तथा बहुत दूर तक मार करने वाली शतघ्नियों पर बड़ा गर्व था। उन्होंने अश्व पकड़ा किन्तु यादव महारथियों के अश्व दुर्ग-प्राचीर कूद गये और गजों के द्वारा नगर के अभेद्य द्वार ध्वस्त कर दिये गये। अश्व लेकर, पुष्पमाल्य से अपने दोनों हाथ बाँधे राजा हेमाङ्गद शरण आये। उन्हें भी अपने पुत्र हंसध्वज को राज्य देकर अनिरुद्ध के साथ जाना पड़ा। नरेशगण चुपचाप अश्व को अपने राज्य में से चले जाने देते थे। अनिरुद्ध के सम्मुख कठिनाई तब आई जब अश्व-स्त्री राज्य की राजधानी के एक उद्यान में जाकर इमली के वृक्ष के नीचे खड़ा हुआ और वहाँ की रानी सुरूपा ने उसे बाँध दिया। महिलाएँ कवच पहिनकर, त्रोण बाँधे, धनुष लिये युद्ध को उद्यत हो गयीं उस राज्य में। अद्भुत देश था वह। वहाँ के विलासी राजा नारीपाल ने असंख्य विवाह किये थे। रूप के गर्व में महामुनि अष्टावक्र का उसने उपहास किया तो मुनि ने शाप दे दिया- 'तेरे राज्य में केवल स्त्रियाँ रह जायेंगी, जिनका कुरूप पुरुष को देखकर हँसना उचित कहा जा सकता है। जो भी पुरुष यहाँ विवाह करके रहेगा, वह एक वर्ष में मर जाया करेगा। तब से वहाँ केवल स्त्रियाँ ही रहती थीं। अब अश्व पकड़कर वहाँ की रानी सुरूपा अपनी स्त्री-सेना के साथ नगर से निकली। उसका कहना था कि उससे अनिरुद्ध विवाह कर लें, यादव सैनिक भी विवाह करें तो अश्व मिलेगा, अन्यथा युद्ध करो। स्त्रियों से युद्ध करके उनका वध करना भी अधर्म था। अनिरुद्ध ने किसी प्रकार रानी को समझाकर प्रस्तुत किया कि वह अपनी सहेलियों के साथ द्वारिका चली जायें। एक वर्ष पीछे लौटने पर द्वारिका में अनिरुद्ध उससे विवाह कर लेंगे। अभी तो वे तथा सब यादव वीर ब्रह्मचर्य व्रत का नियम किये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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