भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
शिवरात्रि का सबेरा
अरुणोदय प्रारम्भ ही हुआ था कि कंस ने दूत भेजकर पीठ, पैदिक, असिलोम आदि मन्त्रियों को बुलवाया। उसने आज्ञा देनी प्रारम्भ की– ‘रंगशाला को फिर से सजा दिया जाय। माल्य, किसलय-तोरणादि शीघ्र लगाये जायें। सुगन्धित धूप जलायी जाये वहाँ चारों ओर। मल्लक्रीड़ा महोत्सव की घोषणा करो। राजकीय वाद्य-वादकगण अविलम्ब वहाँ वादन प्रारम्भ करें। थोड़े ही क्षणों में रंगशाला से सुमधुर वाद्यों की ध्वनि आने लगी। धनुष टूट चुका था, सत्यक जी नगर में नहीं थे। अत: धनुर्यज्ञ अथवा माहेश्वर महामख की चर्चा व्यर्थ थी। कंस ने नगर में मल्लक्रीड़ा महोत्सव की घोषणा करवा दी प्रात:काल। ‘देवकी-वसुदेव को तथा उग्रसेन को भी कारागार से ले आओ।’ कंस ने आदेश दिया– ‘ये सुरक्षित मंचों पर पृथक-पृथक बैठाये जावेंगे। नगर में घोषणा करो कि समस्त नागरिकों को महाराज मल्लक्रीड़ा देखने को आमन्त्रित करते हैं। सबको अवश्य आना चाहिये। कोई गृहों में न रहे। भवनों की–नगर की रक्षाकी व्यवस्था की गयी है। यह कार्य राजपुरुष करेंगे।’ ‘सम्मानित नागरिकों, राजसभा के मण्डलेश्वरों, सामन्तों के समीप विशेष दूत भेज दो।’ कंस ने कहा– ‘मैं रंगशाला पहुँच रहा हूँ। सब लोग वहाँ आने की शीघ्रता करें।’ नागरिक आने लगे। अपने-अपने वर्ण एवं पदों के अनुसार स्त्री-पुरुषों को पृथक्-पृथक् बैठने के लिए मंच बनाये गये थे। राजमंच के दोनों ओर गोलाई में ये मंच थे और राजमंच के ठीक सम्मुख मुख्य द्वार था। राजमंच पर पहुँचने के लिए एक और द्वार बना था और उस मार्ग से केवल महाराज को आना था। मल्लों के प्रवेश का द्वार राजमंच के पार्श्व में था। नारियों के आने का द्वार पृथक था और पुरुषों में भी सामन्तों, मुख्य पुरुषों के अतिरिक्त राजसेवकों के आने का द्वार राजमंच के दूसरे पार्श्व में बनाया गया था। राजसेवक आने वाले नागरिकों को उनके उपयुक्त मंचों पर पहुँचाने लगे। महिलाओं को उनके मंचों तक जाने का मार्ग वे निर्देश कर रहे थे। सामन्तगण–कंस के अधीनस्थ नरपतिगण आने लगे। रंगशाला के बाहर तक उनके वाहन आये और वहाँ उनको उतारकर लौट गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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