प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और तुलसीदासकौशल्या की मनोरथ बेलि फूलने फलने लगी। चारों राजकुमार सरयू तीर पर खेलने कूदने जाने लगे। कभी छोटी छोटी धनुहियाँ लेकर लक्ष्य बेध करते, कभी चौगान खेलते और कभी जल क्रीड़ा किया करते। धन्य वह बाल लीला! बिहरत अवध बीथिन्ह राम। ऐसे हृदय हारी बालक यदि मन में न बसे, तो- नर ते खर सूकर स्वान समान, कहौ, जग में फल कौन जिये? कैसे बालक? सुनिये, ऐसे- पद पंकज मंजु बनी पनहीं, धनुही कर पंकज बान लिये। माता का जरा स्नेह- प्लावित हृदय तो देखिये। राम अब शिशु या बालक नहीं है। युवावस्था में प्रवेश कर चुके हैं। किन्तु माता ममत्वपूर्ण नेत्रों में तो वह अब भी वही बालक हैं। वह यद्यपि भूख प्यास साध सकते हैं, तथापि माता के स्नेह भाव भरित सरल हृदय में खेलते हुए राम को प्रातःकाल ही कुछ कलेवा कर लेना चाहिए- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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