प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्यवात्सल्य रस में शान्त, दास्य और सख्य रसों का भी मधुर आस्वादन प्रेमी को मिलता है। शान्त का गुणगौरव, दास्य का सेवा भाव और सख्य का असंकोच वात्सल्य स्नेह में मिला रहता है। इसी से यह महारस अमृत से भी अधिक मधुर माना गया है। अवधराज दशरथ के वे सरयूती पर चौगान खेलने वाले चारों सुंदर सुकुमार कुमार आज भी हमारे हृदय पटल पर अंकित हो रहे हैं। कृष्ण बलराम की वह कालिन्दी कछारों पर ग्वाल बालों के साथ खेलने वाली विश्व विमोहिनी जोड़ी आज भी हमारी आँखों में समायी हुई है। परित्यक्ता शकुन्तला का वह आश्रम में सिंह शावक के साथ खेलता हुआ शिशु भरत आज भी हमें स्नेह अधीर कर देता है। धन्य है वह गोद, जो बालकों के धूलि धूसरित अंगों से मैली हुआ करती है। धन्य हैं वे श्रवण, जिनमें बालकों की तोतली बोली की सुधा धारा बहा करती है! धन्य हैं वे नेत्र, जिनमें बच्चों की भोली भाली बाल छबि बसा करती है! हाँसी बिन हेतु माहिं दीसति बतीसी कछू, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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