प्रेम योग -वियोगी हरि
विश्व प्रेमससीम से असीम की ओर, सान्त से अनन्त की ओर यदि कोई प्रेम के कठिन पंथ से गया, तो भगवान् बुद्धदेव ही गये। विश्व प्रेम के अलौकिक आलोक मे हमें तो एक बुद्ध की ही प्रतिमूर्ति स्पष्टतया देख पड़ी है। सबसे ऊँचे दरजे का प्रेमी अपने प्रेम पात्र को विश्व व्याप्त प्रेम के द्वारा केवल अपनी ही दृष्टि में नहीं, बल्कि सारी दुनिया की नजर में परमात्मा बना जाता है। यह लोकोत्तर चमत्कार उपास्य में उपासक की परम तल्लीनता का ही अन्यतम फल है। उपासक अपने उपास्य को ईश्व के रूप में देखता है और देखता है उसे चराचर जगत् में रमा हुआ। यही कारण है कि उसका प्यारा प्रेमपात्र अखिल विश्व के सामने परमात्मा के रूप में दिखायी देता है। एक ऊँचा प्रेमी अपने प्रियतम से कह गया है- परस्तिश की याँ तक कि, ऐ बुत, तुझे, जरूर इस बुतपरस्ती पर, ऐ जाहिद तेरी सारी हक़परस्ता निसार होने को छटपटा रही होगी। जिस प्रेम को हमने व्यापी नहीं बना लिया, वह निस्संदेह एक दिन नष्ट होने को है। वह बूँद, जो समुद्र नहीं बन गयी, जरूर एक दिन खाक में मिल जायेगी। गालिब ने कहा है- अब जरा, विश्व प्रेमी स्वामी रामतीर्थ की मस्तीभरी अबकर दिली को देखिये। राम बादशाह गा रहा है- हर जान मेरी जान है, हर एक दिल है दिल मेरा, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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