प्रेम योग -वियोगी हरि
कुछ आदर्श प्रेमीमीन बियोग न सहि सकै, नीर न पूछै बात। तब भी मीन के प्रेम में कमी नहीं आने पाती। धन्य है उस अनन्य प्रेम का एकांगी प्रेम। ‘जीवन हो मेरो’ यह भाषत सकल नेही, जीते जी तो प्यारे जल को छोड़ेगी ही क्यों, मरने पर भी मछली उसे ही चाहती और उसी का प्रेम मांगती है। मरकर काटे जाने पर भी पानी से ही स्वच्छ होती है और पकाकर खाये जाने पर जल की ही चाह करती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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