प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों का सत्संगयदि कहीं मिल जाय तो, फिर क्या पूछना- यों तो बहुतेरे दुनियावी आशिक़ मिले, पर उस मालिका का सच्चा आशिक तो हमें कोई नहीं मिला- दिल मेरा जिससे बहलता, कोई ऐसा न मिला; इसी से अब यहाँ जी नहीं लगता- इन उजड़ी हुई बस्तियों में जी नहीं लगता, इन बने हुए प्रेमियों के साथ रहने में अब दिल घबरा सा रहाहै। क्या समझ रक्खा है इन भले आदमियों ने प्रेम को! ऐसे तो पचासों मिलते हैं, पर वैसा एक भी नहीं मिलता। किसके आगे यह दर्द भरा दिल खोलकर रक्खा जाय, उसके दर पर अपना रोना रोया जाय। सुनने वाले बहुत है, पर सुनकर मर्म तक पहुंचने वाला कहाँ है! हाँ, हँसने वाले यहाँ बहुत हैं। इसी से तो जी मे आता है कि- रहिए अब ऐसी जगह चलकर, जहाँ कोई न हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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