प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमाश्रुन आवे नींद, ऐसी कुछ जरुरत भी नहीं। आँसुओं का प्रवाह न रुकना चाहिए, क्योंकि- पूरोत्पीडे तडागस्य परीवाहः प्रतिक्रिया। तालाब जब लबालब भर जाता है, तब बाँध तोड़कर उसका पानी बाहर निकाल देना ही बचाव का सुगम उपाय होता है। इसी तरह अत्यंत शोक क्षोभित व्याकुल मनुष्य के हृदय को अश्रुपात ही विदीर्ण होने से बचा लेने का एकमात्र उपाय है। वह प्रवाह कैसे रुक सकता है। दिल ने आँसुओं का एक भारी खज़ाना जमा कर रखा है। वहाँ पानी ही पानी भरा है। सो अश्रु प्रवाह किसी भाँति रुकने का नहीं। डर इतना ही है कि कहीं वह प्रवाह प्यारे की याद दिल से धोकर न बहा दे। यह न कर सकेगा। यह उसकी ताकत से बाहर की बात है- याद उसकी दिल से धो दे, ऐ चश्मेतर, तो मानूँ, बहने दो, प्रेमाश्रु प्रवाह बहने दो। प्रेम के आँसू बहाने से ही वह प्रियतम मिलेगा। रोने वाले ही उसे भाते हैं, हँसने वाले नहीं। अपनी रुचि ही तो है। इससे, भाई! उसके प्रेम में मस्त होकर तुम तो खुब रोये जाओ- ‘कबिरा’ हँसना दूर कर, रोने से कर प्रीति। आसुओं की महिमा कौन गा सकता है! अपनी यह अश्रु धारा हमें बड़ी प्यारी लगती है, क्योंकि यह हमें उस प्यारे निठुर की प्रीति के सुंदर उपहार में मिली है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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