प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम और विरहहाँ, सचमुच उस बेदिल का भेद तुम्हें न मिलेगा। क्या हुआ जो तुम दिलदार हो। उस दीवाने ने तो हसरते दीदार पर ही अपने दिल को न्योछावर कर दिया है। अब शायद ही वह तुम्हारा दर्शन कर सके, क्योंकि वह बेचारा प्रेमी, दिल के न होने से, आज ताकते दीदार भी खो चुका है- दिल को नियाज हसरते दीदार कर चुके, उसकी इस भारी बेवकूफी पर तुम्हें मन ही मन हँसी तो जरूर आती होगी, सरकार! पर जरा उस बेदिल की आँखों से देखो क्या नजर आता है! वह पगला कहता है कि एक घड़ी तनिक अपने आपसे बिछुड़ देखो, आप ही विरह का सब भेद खुल जायेगा- कैसो संजोग बियोग धौं आहि, फिरौ ‘घनआनँद’ ह्वै मतवारे। बात वही है कि प्रिय से बिछुड़ना अपने आपसे बिछुड़ जाना है और जिसने अपने आपसे बिछुड़ना नहीं जाना, वह उस प्यारे के विरह रस का अधिकारी ही नहीं है। अरे भाई, हसरते दीदार पर अपनी खुदी को न्योछावर कर देने वाला ही तो यह कहने का साहस करेगा कि- बिरह भुवंगम पैठिकै किया कलेजे घाव। कुछ ठिकाना! कितना साहसी और शूर होता है विरही! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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