प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम प्यालास्वर्ग की भी तो एक प्रकार की सुरा सुनने में आती है। अजी, वह कुछ नहीं है। कर्मकाण्डियों की कोरी कल्पनामात्र है। बेचारे उससे अपना थका माँदा मन बहला लेते हैं, न खुद ही उसे पी पाते हैं, न किसी को पिला ही सकते हैं। गालिब ने एक कर्मकाण्ड को कैसा लज्जित किया है- वाइज़, न तुम पियो, न किसी को पिला सको, शराबे तहूर की, स्वर्ग सुरा की यह दशा है! एक बार भी इन नीरस कर्मकाण्डियों को हमारी प्रेम मदिरा का स्वाद मिल गया होता, तो फिर ये अपनी कल्पित स्वर्गसुर का कभी प्रसंग ही न छेड़ते। इसलिए इन कर्मठ रोगियों की दवा प्रेम प्याला ही है। इनमें से कोई पूछे तो बता देना कि थोड़ी सी प्रेम मदिरा पी लो, नीरसता का असाध्य रोग दूर हो जायेगा- बस, प्रेम प्याले में ही एक ऐसा मद्य भरा हुआ है, जो इस नीरस जीवन क रसमय बना देता है। और, रस ही तो इस लोक और उस लोक का एकमात्र सार है- वह आत्म रस प्रेम प्याले में ही तुम्हें घुला मिलेगा। इससे भाई! हम तो बार बार हरिश्चंद्र के स्वर में स्वर मिलाकर यही कहेंगे कि- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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