श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीकृष्ण की रूप माधुरीवज्र-रस-रसीले साह कुन्दनलाल जी श्रीललितकिशोरी बने हुए कहते हैं-
सर्वस्व वार देने पर भी वह फिर अपनी तिरछी चित वन की बरछी से प्रेमी भक्त को घायल करता है और बार-बार उसकी ओर झाँक-झाँककर हँस-हँसकर घाव पर नमक बुरकाता रहता है-
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