श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गोपी-प्रेम का स्वरूपमृत्यु की बाट देखने वाले राजा परीक्षित को महाज्ञानी शुकदेवजी इसीलिये व्रजलीला सुनाते हैं, जिससे सहज ही पराभक्ति को प्राप्तकर परीक्षित भगवान के असली तत्त्व को जान लें और भगवान को प्राप्त हो जायॅं। भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान निष्ठा के नाम से पराभक्ति-प्राप्ति का क्रम (और उसका फल) बतलाते हुए कहा है-
अर्थात् जब मनुष्य विशुद्ध बुद्धि से युक्त, एकान्तसेवी, मिताहारी, मन-वीणा-शरीर को जीता हुआ, सदा वैराग्य को भलीभाँति धारण करने वाला, निरन्तर ध्यान परायण, दृढ़ धारणा से अन्तःकरण को वश में करके शब्द स्पर्शादि विषयों को त्यागकर, राग-द्वेष को नष्ट करके अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को सर्वथा त्याग कर ममता रहित, शान्त हो जाता है, तभी वह ब्रह्मप्राप्ति के योग्य होता है; फिर ब्रह्मभूत होकर सदा प्रसत्र चित्त रहने वाला वह न किसी बात के लिये शोक करता है न किसी वस्तु की आशंका ही करता है और सब प्राणियों में सम भाव से भगवान को देखता है, तब उसे मेरी पराभक्ति प्राप्त होती है। |
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- ↑ गीता 18/51-55
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