श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रेमी के काम-क्रोधादि के पात्र-प्रियतम भगवान
‘हे अच्युत! हे त्रिभुवन सुन्दर! जो कानों के द्वारा हृदय में प्रवेश करके सुनने वालों के अंगताप को हरण कर लेते हैं, वे आपकेदिव्य गुण और जो नेत्रधारियों की दष्टि का सबसे परम लाभ है, वह आपका दिव्य रूप-इनकी प्रशंसा सुनकर मेरा चित्त सारी लोकलाज को छोड़कर आप पर अत्यन्त आसाक्त हो गया है। |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ श्रीमद्भा0 10।52।37–38,43