श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रेम-भक्तिनाचना, भूमि पर लोटना, गाना, जोर से पुकारना, अंग मोड़ना, हुंकार करना, जँभाई लेना, लम्बे श्वास छोड़ना आदि अनुभाव के लक्षण हैं। अनुभाव भी दो प्रकार के हैं- शीत और क्षेपण। गाना जँभाई लेना आदि को शीत और नृत्यादि को क्षेपण कहते हैं। सात्तिव भाव आठ हैं - स्तम्भ (जडता), स्वेद (पसीना), रोमांच, स्वरभंग, कम्प, वैवण्र्य, अश्रु और प्रलय (मूर्च्छा)। ये सात्तिव भाव स्निग्ध, दिग्ध और रूक्ष भेद से तीन प्रकार के हैं। इनमें स्निग्ध सात्तिव के दो भेद हैं- मुख्य और गौण। साक्षात् श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में उत्पन्न होने वाला स्निग्ध सात्तिव मुख्य है और परम्परा से अर्थात किंचित् व्यवधान से श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में उत्पन्न होने वाला स्निग्ध-सात्तिव भाव गौण है। स्निग्ध-सात्तिव भाव नित्य सिद्ध भक्तों में ही होता है। जातरति अर्थात जिनके अन्दर प्रेम उत्पन्न हो गया है- उन भक्तों के सात्तिव भाव को दिग्ध भाव कहते हैं और अजातरति अर्थात जिसमें प्रेम उत्पन्न नहीं हुआ है, ऐसे मनुष्य में कभी आनन्द-विस्मयादि के द्वारा उत्पन्न होने वाले भाव को रूक्ष भाव कहा जाता है। ये सब भाव भी पाँच प्रकार के होते हैं - धूमायित, ज्वलित, दीप्त, उद्दीप्त और सुद्दीप्त। जो बहुत ही प्रकट हैं, किंतु जिन्हें गुप्त रखा जा सकता है, ऐसे एक या दो सात्तिव भावों का नाम धूमायित है। एक ही समय उत्पन्न होने वाले दो-तीन भावों का नाम ज्वलित है। ज्वलित भावों को बड़े कष्ट से गुप्त रखा जा सकता है। बढ़े हुए और एक ही साथ उत्पन्न होने वाले तीन-चार या पाँच सात्तिव भावों का नाम दीप्त है, यह दीप्त भाव छिपाकर नहीं रखा जा सकता। अत्यन्त उत्कर्ष को प्राप्त एक ही साथ उदय होने वाले छः, सात या आठ भावों का नाम उद्दीप्त है। यह उद्दीप्त भाव ही महाभाव में सुद्दीप्त हो जाता है। इनके अतिरिक्त रत्याभासजनित सात्तिव भाव भी होते हैं, उनके चार प्रकार हैं। मुमुक्षु पुरुष में उत्पन्न सात्तिव भाव का नाम रत्याभासज है। कर्मियों और विषयी जनों में उत्पन्न सात्तिव भाव का नाम सत्तवाभासज है। जिनका चित्त सहज ही फिसल जाता है या जो केवल अभ्यास में लगे हैं, ऐसे व्यक्तियों में उत्पन्न सात्तिव भाव को निस्सत्तव कहते हैं और भगवान में विद्वेष रखने वाले मनुष्यों में उत्पन्न सात्तिवक भाव को प्रतीप कहा जाता है। व्यभिचारिभाव 33 हैं - निर्वेद, विषाद, दैन्य, ग्लानि, श्रम, मद, गर्व, शंका, त्रास, आवेग, उन्माद, अपस्मार, व्याधि, मोह, मरण, आलस्य, जाड्य, लज्जा, अनुभाग-गोपन, स्मृति, वितर्क, चिन्ता, मति, धृति, हर्ष, उत्सुकता, उग्रता, अमर्ष, असूया, चपलता, निद्रा, सुप्ति और बोध। |
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