श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
साधन-भक्तिपूर्वोक्त साधन-भक्ति के द्वारा भाव और प्रेम साध्य होते हैं। वस्तुतः भाव और प्रेम विषयसिद्ध वस्तु हैं, ये साध्य हैं ही नहीं। साधन के द्वारा जीव के हृदय में छिपे हुए भाव और प्रेम प्रकट हो जाते हैं। साधन-भक्ति दो प्रकार की होती है-
अनुराग उत्पन्न होने के पहले जो केवल शास्त्र की आज्ञा मानकर भजन में प्रवृत्ति होती है, उसका नाम वैधी भक्ति है। भजन के 64 अंग होते हैं। जब तक भाव की उत्पत्ति नहीं होती, तभी तक वैधी भक्ति का अधिकार है।
व्रजेन्द्रनन्दन श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण में जो स्वाभाविकी परमाविष्टता अर्थात् प्रेममयी तृष्णा है, उसका नाम है- राग। ऐसी रागमयी भक्ति को ही रागात्मिका भक्ति कहते हैं। रागात्मिका भक्ति के दो प्रकार हैं- कामरूपा और सम्बन्धरूपा। जिस भक्ति की प्रत्येक चेष्टा केवल श्रीकृष्णसुख के लिये ही होती है अर्थात् जिसमें काम प्रेमरूप में परिणत हो गया है उसी को कामरूपा रागात्मिका भक्ति कहते हैं। यह प्रख्यात भक्ति केवल श्रीगोपीजनों में ही है; उनका यह दिव्य और महान् प्रेम किसी अनिर्वचनीय माधुरी को पाकर उस प्रकार की लीला का कारण बनता है, इसीलिये विद्वान् इस प्रेम-विशेष को काम कहा करते हैं। मैं श्रीकृष्ण का पिता हूँ, माता हूँ- इस प्रकार की बुद्धि का नाम सम्बन्धरूपा रागात्मिका भक्ति है। इस रागात्मिका भक्ति की जो अनुगता भक्ति है, उसी का नाम रागानुगा है। रागानुगा भक्ति में स्मरण का अंग ही प्रधान है। रागानुगा भी दो प्रकार की है- कामानुगा और सम्बन्धानुगा। कामरूपा रागात्मिका भक्ति की अनुगामिनी तृष्णा का नाम कामागुना भक्ति है। कामागुना के दो प्रकार हैं- सम्भोगेच्छामयी और तत्तद्भावेच्छात्मा। केलि-सम्बन्धी अभिलाषा से युक्त भक्ति का नाम सम्भोगेच्छामयी है; और यूथेश्वरी व्रजदेवी के भाव और माधुर्य की प्राप्तिविषयक वासनामयी भक्ति का नाम तत्तद्भावेच्छात्मा है। श्रीविग्रह के माधुर्य का दर्शन करके या श्रीकृष्ण की मधुर लीला का स्मरण करके जिनके मन में उस भाव की कामना जाग उठती है, वे ही उपर्युक्त दोनों प्रकार की कामागुना भक्ति के अधिकारी हैं। जिस भक्ति के द्वारा श्रीकृष्ण के साथ पितृत्व-मातृत्व आदि सम्बन्धसूचक चिन्तन होता है और अपने ऊप उसी भाव का आरोप किया जाता है, उसी का नमा सम्बन्धानुगा भक्ति है। |
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