श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
बिखरे सुमन6- लीलाशक्ति एवं कृपाशक्ति भगवान की समस्त शक्तियों में प्रधान हैं। कोई भी शक्ति इन दोनों शक्तियों के विरोध में आत्म प्रकाश नहीं करती। सारी शक्तियाँ इन दोनों शक्तियों के प्रकाश के लिये ही कार्य करती हैं और सदा इनके अनुगत होकर चलती हैं। इस प्रकार हम लीला कथा सुनकर अविश्वास करके नाना प्रकार के अपराध कर बैठते हैं। हमारे पाप के साथ-साथ वक्ता को भी पाप का भागी होना पड़ता है। जो श्रीकृष्ण लीला में रंच मात्र भी अविश्वास करते हों, जो अपनी विद्वत्ता के कारण उसे रूपक, कल्पना आदि बताते हों, उनके सामने लीला-कथा नहीं कहनी चाहिये। श्रीकृष्ण लीला उन्हीं के सामने कहनी चाहिये, जो तर्क के स्थान पर विश्वास रखते हों तथा जो श्रद्धापूर्वक लीला कथा सुनना चाहते हों। भगवान की लीला अत्यन्त गुह्य है। 10- भगवान श्रीकृष्ण का ऐश्वर्य तो सर्वत्र व्याप्त है, उसे देखने के लिये प्रयास नहीं करना पड़ता; पर उसका माधुर्य बड़ा गोपनीय है, उसका प्रकाश उनकी कृपा के बिना नहीं हो सकता। उनका माधुर्य तो उनकी मुग्धता में ही है। वे जब बहुत बड़े होकर भी बहुत छोटे बनते हैं, ज्ञानमय होकर भी अज्ञ बनते हैं, प्रेमी भक्तों के साथ मिलन एवं विरह की लीला करते हैं, उस समय उनका माधुर्य सिन्धु उमड़ता है और उसमें अनन्त एक-से-एक विलक्षण विविध तरंगें लहराने लगती हैं, जिससे सारा जगत परमानन्द-सुधा से आप्लावित हो जाता है। |
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