श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-कृष्ण का तात्विक स्वरूप(ज) प्रश्न- अब भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधाजी के तात्विक स्वरूप का कुछ वर्णन कीजिये। उत्तर- भगवान श्रीकृष्ण और उनकी स्वरूपाशक्ति श्रीराधिका जी के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान उन्हीं को है। दूसरा कोई भी यह नहीं कह सकता कि इनका स्वरूप ऐसा ही है; जो कुछ भी वर्णन होता है‚ वह स्थूल रूप का और आंशिक ही होता है। भगवान क्या हैं‚ इस बात को भगवान ही जानते हैं। अतएव उनका पूर्ण वर्णन कौन कर सकता है। परंतु जो कुछ वर्णन होता है‚ वह उन्हीं का होता है-इस दृष्टि से सभी वर्णन यथार्थ हैं। भगवान का पूर्ण स्वरूप सदा पूर्ण है‚ सब ओर से पूर्ण है‚ सब लीलाओं में पूर्ण है। भगवान श्रीकृष्ण ही विज्ञानानन्दघन निराकार निर्विकार मायातीत ब्रह्म हैं‚ भगवान ही अक्षर आत्मा हैं‚ भगवान ही देवता हैं‚ भगवान ही जीवात्मा‚ प्रकृति और जगत् हैं। जो कुछ है सो वे ही हैं; जो कुछ नहीं है‚ सो भी वे ही हैं। इतना ही नहीं‚ ‘है’ और ‘नहीं’ से जिसका वर्णन नहीं होता‚ वह भी वे ही हैं। इतना होने पर भी अपनी वाणी को पवित्र करने के लिये भगवान का स्वरूप वर्णन लोग करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण समग्र ब्रह्म या पुरुषोत्तम हैं। ब्रह्म‚ परमात्मा‚ आत्मा‚-सब इन्हीं के विभिन्न लीला स्वरूप हैं। श्रीराधाजी इन्हीं की स्वरूपाशक्ति हैं। श्रीराधाजी और श्रीकृष्ण सर्वथा अभिन्न हैं। भगवान श्रीकृष्ण दिव्य चिन्मय आनन्दविग्रह हैं और श्रीराधाजी दिव्य चिन्मय प्रेमविग्रह हैं। वे रसराज हैं‚ ये महाभाव हैं। भगवान की इन्हीं स्वरूपाशक्ति से अनन्तकोटि शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं‚ जो जगत् का सृजन‚ पालन और संहार करती हैं। श्रीराधाजी ही श्रीलक्ष्मी‚ श्रीउमा‚ श्रीसीता‚ श्रीरूक्मिणी हैं। इनमें कोई भेद नहीं है। जैसे चन्द्र-चन्द्रिका‚ सूर्य और प्रभा एक दूसरे से सर्वथा अभिन्न हैं‚ उसी प्रकार युगलस्वरूप भी सर्वथा अभिन्न है। भगवान ने स्वयं कहा है- जो नराधम हम दोनों में भेदबुद्धि करता है‚ वह चन्द्र-सूर्य की स्थिति काल तक कालसूत्र नामक नरक में रहता है।
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