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श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी-महोत्सव
सं. 2026 वि. के जन्माष्टमी-महोत्सव पर रचित
- यमुना ने कर पद स्पर्श, दे दिया मार्ग उनको सुखयोग।
- पहुँचे नन्दभवन, देखे सब खुले द्वार, सोये सब लोग।।
- सुला दिया शिशु को धीरे से तुरत यशोदाजी के पास।
- खोये निधि ज्यों, ले कन्या को, चले उदास, भरे उल्लास।।
- पहुँचे कारागृह तुरंत ही, हुए बंद अपने सब द्वार।
- शिशु-रोदन सुन जागे प्रहरी, पहुँचा एक कंस-दरबार।।
- सुनते ही दौड़ा पागल-सा कंस उसी क्षण, ले तलवार।
- पहुँचा छीन लिया कन्या को, भर मन में आश्चर्य अपार।।
- कन्या कैसे हुई, न समझा मर्म, पकड़ कन्या का हाथ।
- दिया पछाड़ शिलापर पापी ने अति निर्दयता के साथ।।
- रोती रही देवकी, कन्या उड़ी, गयी नभ बिना प्रयास।
- अष्ट भुजा आयुधयुत देवी, बोली, देकर उसको त्रास।।
- ‘मूर्ख! हो चुका है पैदा वह, तुझे मारने वाला वीर।
- मुझे मारकर क्या होगा, मत मार बालकों को, धर धीर।।
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