श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
अखिलरसामृतमूर्ति भगवान श्रीकृष्ण का आविर्भाव
वास्तव में स्वयं भगवान की यह नराकृति नरलोक के नर-शरीरों के आदर्श पर बनी हुई नहीं है, यह नित्य है। वस्तुतः ‘भगवद्देह के आदर्श पर नर-शरीर का निर्माण है। भगवान का शरीर दिव्य, अप्राकृत, देह-देहि-भेद से रहित, जन्म मृत्यु से रहित, सर्व-कारण-कारण, नित्यसिद्ध, निर्विकार, अनादि, सर्वादि, सच्चिदानन्दघनस्वरूप है। और नरलोक का नर-शरीर रक्त-मांसादि से गठित, खण्डित, जन्म-मृत्युशील, पन्चभूतनिर्मित, आत्मा (देही) और देह के भेद से युक्त तथा विनाशी है। भगवद्विग्रह स्वेच्छामय विशुद्ध भग्वत्स्वरूप है - उसका प्रारब्ध-परवश निर्माण, कर्मभोग तथा विनाश नहीं होता; वह नित्य, सत्य, सनातन तथा दिव्यकर्मा है। भग्वत्स्वरूपा प्रकृति में अधिष्ठित होकर अपनी ही स्वरूपभूता लीलारूप माया से प्रकट और अप्रकट होता है। |
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