श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
जिस परम पुरुष के अंश, अंशांश, कला, आवेश और पूर्ण आदि अवतारों से सृष्टि-संहारादि लीलाकार्य सम्पन्न होते हैं, उन पूर्ण से भी परे परिपूर्णतम श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं। जो अतीत और अनागत मन्वन्तर, युग और कल्पों में श्रीबलरामजी के रूप में अपनी अंशकला के साथ दिव्य विग्रह धारण करते हैं, सम्प्रति भी आप अपने परिपूर्ण तेज का विस्तार कर रहे हैं, तथा धर्म की स्थापना करके पृथ्वी पर विविध प्रकार से मंगल का प्रसार किया करते हैं। जो उत्तर योगिगणों के लिये भी दुर्लभ और एकमात्र सरल शुद्धाशय द्रवितचित्त भक्तियोगियों के द्वारा ही गम्य है, हे आनन्दकंद! आपके मन्द-मन्द विचरणशील पदारविन्द के उस मकरन्द-रज को हम अपने हृदय में धारण करते हैं। आप पहले से ही परम कमनीय कलेवर को धारण किये हुए हैं और यहाँ इस अवतार में भी उसी कमनीय रूप से आप सुशोभित होंगे। आपका रूप शतकोटि कामदेवों को भी मोहित करने वाला और परम अद्भुत है। आप गोलोकधाम में धारण की हुई दीप्तिराशि को यहाँ भी धारण करेंगे। सर्वोत्कृष्ट धर्मधन के धारयिता आप श्रीराधावल्लभ को हम प्रणाम करते हैं। अवतार का स्वरूप और कारणवैवस्वत-मन्वन्तरीय अट्ठाईसवें चतुर्युग के द्वापर के अन्त में भाद्रमास की मंगलमयी कृष्णाष्टमी के दिन इस पृथ्वी-मण्डल को श्रीकृष्ण के प्राकट्य का परम सौभाग्य मिला था। आज वही श्रीकृष्णजन्माष्टमी का परम पावन महान् महोत्सव-पर्व है। यह स्वयं-भगवान श्रीकृष्ण का समग्र-रूप में पृथ्वी पर अवतरण है। भगवान के स्वरूप-तत्त्व की महिमा और व्याख्या न तो आज तक कोई कर सका है न आगे कोई कर ही सकेगा। स्वयं भगवान के और भग्वत्प्रेमी महानुभावों के सांकेतिक शब्दों के आधार पर उनकी सहज करुणामयी प्रेरणा से ही अपने जीवन को धन्य करने के लिये भगवान के महत्तत्त्व का किंचित स्मरण कर लिया जाता है। भगवान नित्य-सत्य-सच्चिदानन्दघन-मंगल-विग्रह हैं, नित्य सर्वातीत और सर्वमय हैं, सर्वगुणातीत और अचिन्त्यानन्त-सद्गुण-स्वरूप हैं। उनके अचिन्त्यानन्त सौन्दर्य-माधुर्य-ऐश्वर्य नित्य नवायमान हैं। वे नित्य अजन्मा रहते हुए ही जन्म-लीला करते हैं, नित्य अविनाशी होते हुए ही अन्तर्धान होते हैं और नित्य सर्वभूतमहेश्वर होते हुए ही छोटे-से पराधीन शिशु बनकर मधुर शिशु-लीला करते हैं। इसी अपने अचिन्त्यानन्त-युगपद्-विरुद्ध-धर्माश्रयी स्वरूप का संकेत भगवान ने भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय के छठे श्लोक में किया है- |
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