श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
स्वयं-भगवान् का अवतरणआज का यह दिन परम धन्य है। इसी दिन इसी भारत वर्ष में मथुरा के कंस-कारागृह के कृष्ण-तम-घन निभृत कक्ष में घनश्याम श्रीकृष्ण-अनिर्वचनीय-अचिन्त्य-अनन्त-ऐश्वर्य-सौन्दर्य-माधुर्य-परिपूर्ण, अनिर्वचनीय-अचिन्त्य-अनन्य-अनन्त-दिव्य-रस-सुधा-सार-समुद्र, अनिर्वचनीय-अचिन्त्य-अनन्त-सर्वविरुद्ध-गुण-धर्माश्रय- सर्वलोक-महेश्वर, सर्वातीत, सर्वमय, नित्य निर्गुण-सगुण, समस्त-अवतार-बीज, अनन्त-अद्भुत-शक्ति-सामर्थ्य-स्त्रोत, सहज अजन्मा-अविनाशी, सच्चिदानन्द-स्वेच्छा-विग्रह, स्वंय भगवान् का महान् मंगलमय, महान् महिमामय और महान् मधुरिमामय प्राकट्य हुआ था। घोर-बल-दर्पित अतिशय अत्याचारी असुर रूप दुष्ट राजाओं के तथा अनाचार-दुराचार-परायण प्राणियों के विषम भार से आक्रान्त दुःखिनी वसुंधराने गोरूप धारण करके करूण क्रन्दन करते हुए ब्रह्मा जी के पास जाकर अपनी दुःख गाथा सुनायी। पृथ्वी देवी ने कहा- ‘जो भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से विहीन हैं और जो श्री कृष्ण-भक्तों के निन्दक हैं; जो पिता, माता, गुरु, स्त्री, पुत्र और पोष्य-वर्ग का पालन नहीं करते, जो दया-धर्म से रहित हैं, गुरु और देवों के निन्दक हैं; जो मित्रद्रोही, कृतघ्न, झूठी गवाही देने वाले, विश्वासघातक और स्थाप्यधन का अपहरण करने वाले हैं; जो कल्याणरूप मन्त्र और एकमात्र मंगलजनक हरिनाम को बेचते हैं; जो जीवों की हिंसा करते हैं और अत्यन्त लोभी हैं; जो मूढ़लोग पूजा, यज्ञ, उपवास, व्रत, नियम- कुछ भी नहीं करते; जो पापात्मालोग गौ, ब्राह्मणा, देवता, वैष्णव, श्रीहरि, हरिकथा तथा हरिभक्ति से द्वेष करते हैं- ऐसे जो दैत्यगण विविध रूप धारण करके अनवरत अत्याचार-अनाचार-दुराचार कर रहे हैं, उन सबके भीषण भार से मैं अत्यन्त पीड़ित हँ।’ तब ब्रह्माजी ने पृथ्वी को साथ लेकर भगवान शंकर और अन्याय देवताओं को साथ लिया और वे क्षीर सागर के तट पर गये। वहाँ उन्होंने पुरुषसूक्त के द्वारा भगवान् का स्तवन किया। इसके कुछ देर बाद ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गये और उन समाधिस्थित ब्रह्माजी को क्षीराब्धिशायी भगवान् की दैववाणी सुनायी दी। ब्रह्माजी ने उसे सुनकर देवताओं से कहा- ‘हम लोगों की प्रार्थना के पूर्व ही भगवान् वसुंधरा की विपत्ति को जान चुके हैं। वे ईश्वरों के भी ईश्वर (ईश्वरेश्वरः) अपनी कालशक्ति के द्वारा धरणी का भार उतारने के लिये जब तक पृथ्वी पर लीला करें, तब तक तुम लोग भी यदु कुल में जन्म लेकर उनकी लीला में सहयोग प्रदान करो। भगवान् के अंश से सहस्रवदन स्वराट् अनन्तदेव भगवान् से पहले ही प्रकट हो जायँगे। भगवती विष्णुमाया भी नन्दपत्नी यशोदा के गर्भ से अवतरित होंगे। वे परम पुरुष साक्षात् भगवान् स्वयं वसुदेव के घर में प्रकट होंगे। उनकी सेवा-प्रीति के लिये (अथवा उनकी तथा उनकी प्रियतमा श्रीराधा की सेवा के लिये) देवांगनाएँ भी वहाँ जन्म धारण करें- |
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