श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधाभाव की एक झाँकी
श्रीराधिकाजी यों कह रही थीं कि उन्हें श्यामसुन्दर के दर्शन होने बंद हो गये; तब वे अकुला उठीं और बोलीं— ‘हैं, यह सहसा क्या हो गया? श्यामसुन्दर कहाँ छिप गये? हाय! वे आनन्दनिधान मनमोहन मुझे क्यों नहीं दिखायी दे रहे हैं? वे लीलामय क्या आज पुनः आँखमिचौनी खेलने लगे? अथवा मैंने उनको तुम्हें दिखा दिया, इससे क्या उन्हें लाज आ गयी और वे कहीं छिप गये?’
‘नहीं, नहीं! तब क्या वे सचमुच ही मुझे छोड़कर चले गये? हाय! क्या वे मुझसे मुख मोड़कर मुझे अपरिमित अभागिनी बनाकर चले गये? हाय उद्धव! तुम सच कहते हो, तुम सत्य संदेश सुनाते हो? वे चले गये, हा! वे मेरे लिये रोना शेष छोड़कर चले गये!’ |
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