श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इसका कारण यह है कि व्रज की लीला में श्रीकृष्ण के माधुर्य का पूर्ण प्रकाश है। यहाँ भगवान ‘देव’ नहीं हैं, ‘नर-मनुष्य’ हैं, अखिलब्रह्माण्डाधिपति परमेश्वर नहीं है - ‘निजजन’ हैं। भगवान यहाँ ‘नरवपु’ में नरलीला करते हैं। अवश्य ही यह कभी नहीं भूलना चाहिये कि भगवान की यह ‘नरलीला’ प्राकृत नर-लीला- कर्मजनित पाञ्चभौतिक जडदेहसम्पन्न जीव के कर्मविशेष नहीं है। यह नराकृति नित्य सत्य सच्चिदानन्द-परमब्रह्म की स्वरूप लीला हैं। यहाँ जड माया का राज्य नहीं है, भगवत्स्वरूपा चिच्छक्ति योगमाया का साम्राज्य है- विशुद्ध प्रेम, अनन्य प्रीति, एकमात्र शुद्ध माधुर्य का राज्य है। वैसे तत्त्वतः भगवत्स्वरूप में पूर्ण, पूर्णतर और पूर्णतम का कोई भेद नहीं है। उनका कोई भी स्वरूप खण्ड, अपूर्ण, जड वस्तुओं की भाँति परस्पर भिन्न या प्रतियोगी नहीं है। वे नित्य ही सम रूप से पूर्ण हैं। श्रुति में कहा है-
माधुर्यादि गुणसमूह के प्रकाश के तारतम्य की दृष्टि से ही उन्हें पूर्णतम, पूर्णतर और पूर्ण कहा गया है, जो लीला-साम्राज्य में सार्थक और यथार्थ है। |
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- ↑ भक्तिरसामृतसिन्ध
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