श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
जैसे एक ही प्रकाश-ज्योति के नीले, पीले, लाल, हरे आदि विविध वर्णों के स्फटिकों पर पड़ने से विविध वर्णविशेष दिखायी देते हैं, वैसे ही भक्ति के रूप में प्रकट श्रीराधा ही अमूर्त भावविशेष के रूप में दास्य, सख्य, वात्सल्यादि भाव वाले विभिन्न भक्तों में उसी रूप में प्रकट होकर उसी के अनुसार उसी के उपयोगी रसतत्त्व को प्राप्त कराती है। पटरानी-रूप में, लक्ष्मी आदि के रूप में, गोपीरूप में जितनी भी भगवान की कान्ता देवियाँ हैं, वे सभी श्रीराधा की समूर्त अवस्थाविशेष हैं। जिस अवस्था में महाभावरूपा स्वयं राधा और रसराज श्रीकृष्ण प्रेमविलास-वारिधि में लीलायमान हैं, जहाँ ‘रमण’ और ‘रमणी’ की भेदबुद्धि की भी कल्पना नहीं रह जाती, वह सम्पूर्ण रस-भावाद्वैत ही विशुद्ध प्रेमविलास की असीम सीमा है- निरवधि अवधि है। श्रीराधाजी भगवान श्रीकृष्ण की नित्य अभिन्न स्वरूपा-शक्ति हैं। शक्तिमान में शक्ति दो रूपों में रहती है - ‘अमूर्त’ रूप में और ‘मूर्त’ रूप में। शक्तिमान में जो शक्ति की नित्य सत्ता है, वह अमूर्त है और जो स्वरूप से सर्वथा सर्वदा सब प्रकार से अभिन्न होते हुए उस दिव्य शक्ति-सत्ता की अधिष्ठात्री रूप में भिन्न रूप से प्रकट विविध विचित्र स्वरूपभूता लीलामयी-लीलाकारिणी है, वह मूर्त है। भगवान के अचिन्त्यानन्त स्वरूपों में जैसे ‘आनन्द’ स्वरूप प्रधान है, वैसे ही उनकी अचिन्त्यानन्त शक्तियों में आनन्दरूपा ‘ह्लादिनी’ शक्ति प्रधान है। स्वयं रसरूप रसराज भगवान जिस दिव्य आनन्दमयी शक्ति के द्वारा स्वरूपानन्द का रसास्वादन करते हैं और प्रेमी भक्तों को स्वरूपानन्द-रस का आस्वादन कराते हैं, उसी शक्ति का नाम ‘ह्लादिनी’ है। वह स्वरूपतः नित्य अभिन्न और लीलामयी अधिष्ठात्री मूर्ति के रूप में नित्य भिन्न है, वही श्रीराधा हैं। ये ही भक्ति-साम्राज्य में प्रविष्ट होकर लीला से ही क्रमशः घनता की अवस्था में उन्नत होती हुई रति, प्रेम, स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, भाव और महाभाव- नाम धारण करती है। यह महाभाव-प्रेमरस की मूर्तिमान दिव्य सजीव प्रतिमा ही श्रीराधा हैं। |
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