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- बन्ध-मोक्ष, अज्ञान-ज्ञान से, स्वर्ग-नरक से नहिं सम्बन्ध।
- रहा न भोगैश्वर्य, परम दारिद्रय घोर का कुछ भी बन्ध।।
- नहीं किसी में राग तनिक भी, नहीं किसी से भी वैराग्य।
- प्रियतम का, बस, एकमात्र सुख ही मेरा जीवन, सौभाग्य।।
श्रीराधा महाभावरूपा हैं और बड़ी उदारता के साथ नित्य निरन्तर भाव का प्रवाह बहाती रहती हैं। वे सर्वथा त्यागमयी हैं। उनमें स्वसुख की वासना है ही नहीं। केवल श्रीकृष्णसुख-कामना है। साथ ही वे यह भी चाहती हैं कि जैसे मेरे द्वारा प्रियतम श्रीकृष्ण को सुख होता है, वैसे ही मेरी कायव्यूहरूपा समस्त गोपांगनाओं के द्वारा भी उन्हें सुख मिले और उनके सुख से मेरी वह सब सखियाँ भी परम सुखी हों। वे श्रीकृष्ण को केवल अपनी ही वस्तु मानकर उनको अपने ही प्रणयकक्ष में बंद नहीं रखतीं, बल्कि सबके सुख की वस्तु बनाकर वे सबको सुखी करना चाहती हैं। उनके अनन्त विशुद्ध प्रेम में यह स्वाभाविक उदारता है।
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