श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधाका स्वरूप और महत्त्वचातक का प्रेम इससे जरा भी न तो शिथिल होता है और न उसका प्रवाह ही रुकता है। मेघ गरज-गरजकर बड़ी रूखी तथा कठोर ध्वनि करता हुआ, कठोर पत्थर को बरसाता ही है, साथ ही बड़ी डाँट-डपट के साथ तरजकर- तड़ककर वज्र भी गिराता है। फिर भी, क्या चातक अपने प्रियतम मेघा के सिवा किसी दूसरे की ओर ताकता है? कभी नहीं। इतना ही नहीं, मेघ बिजली गिराकर, ओले बरसाकर, बिजली चमकाकर, गरजकर, वर्षा की झड़ी लगाकर और आँधी के प्रबल झोंके देकर अपनी सच्ची खीझ प्रकट करता है अर्थात् वह चातक को दिखलाता है कि मैं तुम्हारा प्रियतम नहीं, पूरा शत्रु हूँ। इतने प्रत्यक्षा दोषों को देखकर भी चातक अपने प्रियतम के प्रति तनिक भी रोष नहीं होता। उसे अपने प्रियतम के दोष दिखते ही नहीं, वरं उसको मेघ के इन कृत्यों में अपने प्रति उसका अनुराग ही दिखायी देता है और वह इसी पर रीझ जाता है (कि मेरा प्रियतम मुझे अपना समझकर स्वच्छन्दता से मेरे साथ अपने मन की करके आत्मीयता का परिचय देता हुआ सुख प्राप्त कर रहा है)।
चातक (पपीहे) का एकांगी प्रेम बहुत ऊँचा हैं। एक पपीहा उड़ रहा था। एक व्याध ने उसे अपने बाण का लक्ष्य बनाया। चातक बुरी तरह घायल हो गया। |
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ दोहावली 302
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