श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा के तत्त्व-स्वरूप-लीला का पुण्यस्मरणइस परमानन्द परमरसमय दिव्य सौन्दर्य-माधुर्य-समुद्र में अवगाहन करने के लिये आवश्यकता है स्व-सुख-वान्छा-कल्पना से सर्वथा रहित श्रीराधा-माधव-सुख-सेवा-स्वरूपिणी मन्जरियों के परम त्याग का आदर्श भाव ग्रहण करके उनका अनुकरण करते हुए अनन्य साधना करने की। इन मन्जरियों की कृपा-प्राप्ति के लिये सारे संदेह-भ्रमों से दूर रहकर श्रीराधा-माधव को प्रसन्न करने वाले नाम-लीला-गुण-श्रवण-कीर्तन करते हुए कातरभाव से श्रीराधारानी से प्रार्थना करनी चाहिये। श्रीराधारानी की कृपा से उनके चरणों का प्रेम प्राप्त होना सहज है। श्रीराधारानी के तत्त्व, स्वरूप तथा लीला के सम्बन्ध में यहाँ आज (दिन में और अभी) जो कुछ कहा गया है, इसमें शास्त्र तथा प्रातः स्मरणीय प्रेमी महात्माओं के वचनों का तो पूर्ण रूप से आश्रय लिया ही गया है; पर यह कोई साहित्यिक आलोचना नहीं है, न निरी श्रद्धा-भावुकता ही है। कुछ ऐसे प्रत्यक्ष-प्राप्त अनुभव भी इसके साथ हैं, जिनका युक्तियुक्त खण्डन किये जाने पर भी, परम सत्य होने के कारण, जो नित्य अक्षुण्ण हैं और रहेंगे। अन्त में श्रीराधारानी के श्रीचरणों में हम प्रार्थना करें-
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