श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीकृष्ण सबसे प्रधान, परमात्मा, परमेश्वर, सबके आदिकारण, सर्वपूज्य, निरीह और प्रकृति से परे विराजमान हैं। उनका रूप स्वेच्छामय और नित्य है। वे भक्तानुग्रह-मूर्ति हैं। श्रीराधा उनको प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं, वे परम सौभाग्यशालिनी हैं। वे ही महाविष्णु की जननी ईश्वरी मूल प्रकृति हैं। श्रीराधिकाजी स्वयं यशोदाजी से कहती हैं-
‘रा’ शब्द का अर्थ है- जिनमें एक-एक लोमकूप में सम्पूर्ण विश्व भरे हैं, वे महाविष्णु तथा (उनके अंदर निवास करने वाले) विश्व के प्राणी और सम्पूर्ण विश्व। एवं ‘धा’ शब्द धात्री तथा माता का वाचक है। अतएव मैं ही महाविष्णु, विश्व के सम्पूर्ण प्राणी तथा समस्त विश्व की धात्री माता ईश्वरी मूलप्रकृति हूँ। |
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