श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गोस्वामी तुलसीदासजी ने इस विषय में अनन्य टेकी तथा प्रेम-विवेकी चातक का बड़ा ही सुन्दर उदाहरण देते हुए कहा है-
(चातक केवल एक मेघ से ही स्वाती की बूँद चाहता है, न दूसरे की ओर ताकता है न दूसरा जल ही स्पर्श करता है। इस चातक के टेक का वर्णन करते हुए तुलसीदास कहते हैं-) चाहे तुम ठीक समय पर बरसो, चाहे जीवनभर कभी न बरसो; परंतु इस चित्त-चातक को तो केवल तुम्हारी आशा है।
अपने प्यारे मेघ का नाम रटते-रटते चातक की जीभ लट गयी और प्यास के मारे सारे अंग सूख गये; तो भी चातक के प्रेम का रंग तो नित्य नवीन और सुन्दर ही होता जाता है।
समय पर मेघ बरसता तो है ही नहीं, उलटे कठोर पत्थर-ओले बरसाकर उसने चातक की पाँखों के टुकड़े-टुकड़े कर दिये; इतने पर भी उस प्रेम-टेकी चतुर चातक के प्रेमप्रण में कभी चूक नहीं पड़ती। |
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