श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा को उद्धव के इन सहानुभूतिपूर्ण वचनों में भी प्रियतम की निन्दा सुनना सहन नहीं हुआ और वे उन्हें रोककर बीच में ही बोल उठीं- ‘उद्धव! ऐसा मत कहो। वे मेरे प्राणनाथ कदापि निष्ठुर-निर्दय नहीं हैं। वे बड़े ही सदय-सहृदय हैं। मैं जानती हूँ, उनका हृदय अत्यन्त कोमल है। अब भी वे मेरी स्मृति से, पता नहीं, कितने कैसे व्याकुल हो रहे होंगे। वे बिना ही रूप-गुण देखे सदा मुझपर मुग्ध रहते हैं। सच तो यह है कि मैं ही अभागिनी हूँ। उद्धव! मैं उन प्राणनाथ प्रियतम को कैसे भूल जाऊँ? उनकी मधुर-मधुर स्मृति ही तो मेरा जीवन है- मेरा अस्तित्व है। इस राधा के रूप में केवल उनकी स्मृति ही तो बची है। क्षणभर की भी उनकी विस्मृति का अर्थ है- राधा का मरण- राधा के अस्तित्व का अभाव!’
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