श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधिकाजी और प्रेम के ‘विषय’ हैं- सेवा स्वीकार करने वाले श्रीकृष्ण। श्रीराधा के सिवा किसी भी श्रीकृष्ण-प्रेयसी में इस जाति का परमोकृष्ट प्रेम नहीं है। श्रीराधिकाजी ही इस मादनाख्य विभु प्रेम की एक मात्र अधिकारिणी हैं।
प्रेम के विकास में स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, भाव और महानुभाव- ये कई स्तर हैं। महाभाव के भी मोदन और मादन दो भेद हैं। प्राकृत मन-इन्द्रिय को चरितार्थ करने वाले नीच काम की तो यहाँ कल्पना ही नहीं है। काम एक प्राकृत चित्त की वृत्ति है, जो विषयासक्त लोगों के मन में प्रकट होती है, जो सदा-सर्वदा केवल ‘निज सुख-वान्छा’ रूप ही होती है तथा जिसमें त्याग रूप पवित्रता का लेश भी नहीं है।
उपर्युक्त स्नेह आदि का संक्षिप्त रूप यह है—
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- ↑ उ. नी.
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