श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इतनी बात अवश्य है कि जिन लोगों ने श्रीकृष्ण की व्रजलीला में, उनके गोपी-वल्लभस्वरूप में, श्रीगोपांगनाओं में और महा महिमामयी श्रीराधा के जागतिक हेय भाव की कल्पना की है या जो करते हैं, वे या तो परात्पर श्रीराधा-कृष्ण के स्वरूप की अनभिज्ञता से ही ऐसा करते हैं अथवा उनके भोग राज्य की राधा उन्हें वैसी ही दिखायी देती होंगी। मेरी राधा तो ऐसी हैं, जिनके पवित्रतम प्रेम-राज्य में मलिन काम और भोग के कल्पना लेश का भी कभी कहीं प्रवेश नहीं है। वे विलक्षण श्रृंगार धारण करती हैं, परंतु उसमें कहीं तनिक भी आसक्ति नहीं है; उनका पवित्र करने वाला प्रेम मोह से सर्वथा रहित है। उनमें ममता है, परंतु वह स्व-सुख-इच्छा से विरहित है। उनके अपने योग क्षेम पूर्ण रूप से प्रियतम श्रीकृष्ण में समर्पित हैं। वे खाती-पीती हैं, पर स्वाद के लिये नहीं। वे अत्यन्त मानवती हैं, किंतु अभिमान से रहित हैं। उनमें भोगों का बाहुल्य है, पर भोग-दृष्टि से वे नित्य भोग रहित हैं। वस्तुतः वे केवल अपने प्रियतम के ही पवित्रतम सुख की खान हैं। उनका इन्द्रिय-समूह, उनका शरीर, उनका मन, उनके प्राण, उनकी बुद्धि और उनका अहं- सभी कुछ प्रियतम के लिये ही है। उनसे उनका अपना कुछ भी काम नहीं है, वे सब सदा प्रियतम के कार्य में ही लगे रहते हैं। |
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