श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधारानी के अनन्त गुणों का जितना गान किया जाय, उनके चरित्रगत महान मधुरतम अत्युच्च भावों का जितना ही स्मरण किया जाय उतना ही अपना परम सौभाग्य है। श्रीराधा-माधव के अगाध स्वरूप-समुद्र के क्षुद्रतम एक सीकर की छबि देखिये। श्रीराधाजी कहती हैं- ‘हम दोनों अनाधि अनन्त नित्य एक सनातन रूप हैं और सदा ही दो बने हुए सहज ही अनन्त अचिन्त्य अतुलनीय लीला करते रहते हैं। हम नित्य पुरातन और नित्य नूतन, सदा एक, एक रस तथा अभिन्न हैं। पर हमारी भिन्नतामयी रस लीला धारा का प्रवाह नित्य अविच्छिन्न रूप से बहता रहता है। उस रस लीला धारा में सदा ही सहज ही सुख मय मिलन है और सदा ही सहज ही दारुण विरह-वियोग जनित हृदय-दाह है। उसमें नित्य मधुर मृदु मनोहर हास्य है और नित्य आह-कराह भरा करुण रुदन है। मेरा यह क्रन्दन अनादि और अनन्त है तथा दुःखभार-रूप सुख मय है। हमारा यह मधुर सुखसार-स्वरूप अमिलन में मिलन-वियोग में संयोग और मिलन में अमिलन-संयोग में वियोग नित्य है तथा परम अतर्क्य है। |
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