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श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-श्रीकृष्ण का नित्यरूपधर्महीन मनुष्य को शास्त्रकारों ने पशु बतलाया है। जो संसार के समस्त जीवों के कल्याण का कारण हो, उसे ही धर्म समझना चाहिये। धृति, क्षमा, दम, अस्तेय (चोरी न करना), शौच, इन्द्रिय-निग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध- ये दस धर्म के लक्षण हैं। चोरी अनेक प्रकार से होती है, किसी की वस्तु को उठा लेना, वाणी से छिपाना, बोलकर चोरी करवाना, मन से परायी वस्तु को ताकना आदि सब चोरी के ही रूप हैं। समाज की प्रगति चोरी की ओर बड़े वेग से बढ़ रही है। (मानव-धर्म नामक पुस्तक से)साधन में एक विघ्र है परदोष-दर्शन। साधक को इस बात से कुछ प्रयोजन नहीं रखना चाहिये कि ‘दूसरे क्या करते हैं।’ साधक को अपनी साधना के कार्य से इतनी फुरसत ही नहीं मिलनी चाहिये जिससे वह दूसरे का एक दोष भी देख सके। जिन लोगों में दूसरों के दोष देखने की आदत पड़ जाती है वे साधन-पथ पर स्थिर रहकर आगे नहीं बढ़ सकते। जब दोष दीखते ही नहीं तब उनकी आलोचना करने की तो कोई बात ही नहीं रह जाती। दोष अपने देखने चाहिये। (साधन-पथ नाम पुस्तक से)अपने मन के विरुद्ध शब्द सुनते ही किसी की नीयत पर सन्देह करना उचित नहीं।.... अगर आप दूसरे को चुपचाप बैठाकर अपनी बात सुनाना और समझना पसंद करते हैं तो इसी तरह उसकी बात सुनने के लिये आपको भी तैयार रहना चाहिये। (आनन्द की लहरें नामक पुस्तक से) |
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