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श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
परिशिष्टश्रीराधा, श्रीराधा-नाम और राधा-उपासना सनातन हैवैष्णव-दार्शनिक श्रीबलदेव विद्याभूषण ने अपने ‘प्रमेयरत्नावली’ नामक ग्रन्थ[1] में अर्थवदीय पुरुषबोधिनी श्रुति का यह मन्त्राश उद्धृत किया है-
कई उपनिषदों में राधा के नाम और प्रसगं है। भगवान शंकराचार्य- जिनको सम्प्रदाय-मत से ईसापूर्व चैथी शताब्दी में अवतरित मानते हैं, अपने यमुनाष्टक में कहते हैं- ‘हे यमुने! राधिकावल्लभ के चरण कमल में रति प्रदान कीजिये।’ श्रीमद्भागवत में और विष्णुपुराण में भी प्रच्छन्न रूप से राधा का उल्लेख है। इसके सिवा पहापुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, भविष्यपुराण, श्रीमद्देवीभागवत, मत्स्यपुराण, आदि पुराण, वायु पुराण, वराह पुराण, नारदीय पुराण, गर्गसंहिता, सनत्कुमारसंहिता, नारदपाच्चरात्र, राधातन्त्र आदि अनेकों ग्रन्थों में ‘राधा-महिमा’ का स्पष्ट उल्लेख है। इससे यह कहना सर्वथा भ्रम है कि राधा-कथा का समावेश या राधा-नाम का प्रचार तीन-चार सौ वर्ष से ही हुआ है। उपर्युक्त प्रमाण भक्त-प्रेमियों के लिये नहीं दिये गये हैं, वे तो शकांशील बुद्धिवादी पुरुषों की शकां-निवृत्ति के लिये हैं। पर संदेहवादी पुरुषों का संदेह इससे पूर्णतया निवृत्त हो ही जायगा, यह नहीं कहा जा सकता। हाँ, संदेह वादी पुरुषों के तर्क से श्रद्धालु लोग भ्रम में न पड़ जायँ, इसमें यह विवेचन सहायक हो सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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