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श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
परिशिष्टश्रीराधा, श्रीराधा-नाम और राधा-उपासना सनातन हैइसी श्लोक के अनुरूप एक श्लोक ‘सदुक्तिकर्णामृत’ में मिलता है-
महाकवि कालिदास ने मेघदूत में गोपवेशधारी विष्णु का वर्णन किया है और रघुवंश में इन्दुमती के स्वयंवर में जिस प्रकार वृन्दावन के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है, उससे पता लगता है कि कवि व्रज सौन्दर्य की स्मृति से मुग्ध हो गया है। श्रीनिम्बार्काचार्य को उनके भक्तगण तो द्वापर के अन्त में प्रकट मानते हैं, पर आधुनिक विद्वान् उनका समय 12 वीं शताब्दी मानते हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से अपने सम्प्रदाय में श्रीराधाकृष्ण-उपासना का प्रवर्तन किया था। उनकी रचनाओं में राधा का नाम प्रचुरता से आता है। उनकी वेदान्त ‘दशश्लोकी’ का यह श्लोक देखिये-
पच्चतन्त्र की रचना लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व हुई थी, उसमें वर्णन है कि एक तन्तुवाय (बुनकर) का पुत्र श्रीकृष्ण सजकर अपने सूत्रधर मित्र की सहायता से लकड़ी के बने गरुड़ पर सवार होकर किसी राजान्तःपुर में पहुँच गया और उसने अपनी प्रणयिनी राजकन्या से बोला-
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