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वे पचीस गुण निन्नलिखित हैं-
- मधुरिमा,
- नित्यकिशोरावस्था,
- नेत्रों की चंचलता,
- निर्मल उज्ज्वल हास्य,
- सुन्दर सौभाग्यरेखा,
- माधव-मनसोन्मादकारी श्रीअंग-सौरभ,
- संगीतशास्त्र में निपुणता,
- श्रुतिमनोज्ञ वाणी,
- नर्म-पाण्डित्य यानी परिहास-वाक्यों के प्रयोग में निपुणता,
- सहज विनयशीलता,
- पूर्ण करुणा,
- विदग्धता,
- कर्तव्यकुशलता,
- लज्जाशीलता,
- सुमर्यादा-श्रीकृष्ण के प्रति गौरव-बुद्धि,
- परम धैर्य,
- आदर्शगम्भीरता,
- लीलामयता,
- परमोत्कर्षमयी महाभावमयता,
- गोकुल की प्रेमपात्री,
- ब्रह्माण्डों में उद्दीप्त यश;
- गुरुजनों के श्रेष्ठ स्नेह की पात्रता,
- सखियों के प्रति प्रेम-परवशता,
- श्रीकृष्णप्रिया रमणियों में सर्वप्रधानता और
- प्रियतम श्रीकृष्ण को सदा-सर्वदा अपने अधीन रखने की मधुर शक्ति।
रा० मा० चि० 4-
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