यशोदा माता का वात्सल्य प्रेम
वृन्दावन में उन वृन्दावन विहारी ने अनन्त लीलाएँ कीं। उनका वर्णन कौन कर सकता है, किंतु यशोदा जी को जो महान विकलता हुई, वह एक ही घटना थी। कालियह्रद में एक विषधर नाग रहता था। उसने समस्त यमुना जी के जल को विषैला बना दिया था। गेंद उस ह्रद में गिर गयी। उसी के आधार पर मुरारी कदम्ब की डाली पकड़ कर कालियह्रद में कूद पड़े। सर्वत्र हाहाकार मच गया। व्रजवासी दौड़े आये। यशोदा मैया ने भी सुना। भला, उनके दुःख का क्या पूछना है। वे अपने प्यार बच्चे को न पाकर छटपटाने लगीं। उन्होंने बड़े आर्त स्वर में कहा - ‘अरे, कोई मेरे बच्चे को बचा दो, मुझे मेरे छौने को दिखा दो।’ रोते-रोते वे उस कुण्ड में कूदने लगीं। जैसे-तैसे बलराम जी ने उन्हें रोका। जब नाग को नाथकर नन्द नन्दन बाहर आ गये तो माता ने उन्हें छाती से चिपटा लिया। प्रेमाश्रुओं से नहला दिया!
- यशोदा वर्ण्यमानानि पुत्रस्य चरितानि च।
- श्रृण्वन्त्यश्रूण्यवास्त्राक्षीत् स्नेहस्नुतपयोधरा।।
उनकी आँखों से प्रेम के अश्रु बह रहे थे, स्तनों से दूध निकल रहा था, वे स्मृतियाँ रह-रह कर उसे रुला रहीं थीं-
यशोदा धन्य हैं, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की मधुर बाल-लीलाओं का आनन्द लूटा। देवकी जी तो इस सुख से वञ्चित ही रहीं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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