यशोदा माता का वात्सल्य प्रेम 2

यशोदा माता का वात्सल्य प्रेम


वृन्दावन में उन वृन्दावन विहारी ने अनन्त लीलाएँ कीं। उनका वर्णन कौन कर सकता है, किंतु यशोदा जी को जो महान विकलता हुई, वह एक ही घटना थी। कालियह्रद में एक विषधर नाग रहता था। उसने समस्त यमुना जी के जल को विषैला बना दिया था। गेंद उस ह्रद में गिर गयी। उसी के आधार पर मुरारी कदम्ब की डाली पकड़ कर कालियह्रद में कूद पड़े। सर्वत्र हाहाकार मच गया। व्रजवासी दौड़े आये। यशोदा मैया ने भी सुना। भला, उनके दुःख का क्या पूछना है। वे अपने प्यार बच्चे को न पाकर छटपटाने लगीं। उन्होंने बड़े आर्त स्वर में कहा - ‘अरे, कोई मेरे बच्चे को बचा दो, मुझे मेरे छौने को दिखा दो।’ रोते-रोते वे उस कुण्ड में कूदने लगीं। जैसे-तैसे बलराम जी ने उन्हें रोका। जब नाग को नाथकर नन्द नन्दन बाहर आ गये तो माता ने उन्हें छाती से चिपटा लिया। प्रेमाश्रुओं से नहला दिया!

समय बदला। उन लीलाओं की स्मृति का अवसर आया। अक्रूर के साथ घनश्याम मथुरा चले गये। माता को आशा थी जल्दी आयेंगे, किंतु वह ‘जल्दी’ फिर आयी नहीं। उसके स्थान में उद्धव सन्देश लेकर आये! उन्हें देखते ही नन्द जी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी। पास में बैठी हुई वियोगिनी माता अपने पुत्रों की सब बातें सुन रही थी। रह-रह कर उसके हृदय में हूक उठ रही थी। उन स्मरणों के आते ही माता की विचित्र दशा हो गयी।
यशोदा वर्ण्यमानानि पुत्रस्य चरितानि च।
श्रृण्वन्त्यश्रूण्यवास्त्राक्षीत् स्नेहस्नुतपयोधरा।।

उनकी आँखों से प्रेम के अश्रु बह रहे थे, स्तनों से दूध निकल रहा था, वे स्मृतियाँ रह-रह कर उसे रुला रहीं थीं-

‘ते हि नो दिवसा गताः’

यशोदा धन्य हैं, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की मधुर बाल-लीलाओं का आनन्द लूटा। देवकी जी तो इस सुख से वञ्चित ही रहीं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः