पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
28. द्रौपदी-सत्यभामा संवाद
‘मैं असभ्यतापूर्वक नहीं खड़ी होती। बुरे स्थान पर नहीं बैठती। पतियों के सम्मुख असज्जित नहीं जाती। उनके अभिप्रायपूर्ण संकेतों का अनुसरण करती हूँ। देवता, गन्धर्व, मनुष्य– कोई हो, धन-रुप-यौवन-ऐश्वर्य में कितना भी श्रेष्ठ हो, मेरा मन पाण्डवों के अतिरिक्त किसी और की ओर नहीं जाता।’ ‘पतियों को भोजन कराये बिना मैंने कभी भोजन नहीं किया। उनके बैठे बिना नहीं बैठती। जब-जब वे घर में आते हैं मैं उठकर खड़ी हो जाती हूँ। आसन तथा जल देकर उनका सत्कार करती हूँ। यहाँ वन में तथा राजभवन में भी बर्तनों की स्वच्छता पर मेरा ध्यान रहता है। रसोई सुस्वादु बनाती हूँ और स्वयं परसकर भोजन कराती हूँ। ‘घर को स्वच्छ रखती हूँ। गुप्तरूप से अन्न का और कुछ धन का भी संचय रखती हूँ। पति को प्रयोजन हो तो उसे देने में संकोच नहीं करती। किसी का तिरस्कार नहीं करती। कुलटा स्त्रियों से, पति के शत्रुओं से और जो उन्हें अप्रिय हैं, उनसे दूर रहती हूँ।’ ‘द्वार में बार बार जाकर खड़ी नहीं होती। खुले स्थान पर या कूड़ा डालने के स्थान पर कभी भी देर तक नहीं रुकती। ’पति जब कार्यवश कहीं चले जाते हैं कई दिनों को तो आभूषण, चन्दन, अंगराग, पुष्प त्यागकर नियम एवं व्रतों का पालन करती हूँ। पतियों को छोड़कर रहना मुझे सर्वथा पसन्द नहीं। वे जो नहीं खाते, पीते या जिन वस्तुओं का सेवन नहीं करते उनसे मैं भी दूर रहती हूँ।’ ‘मेरी महनीया सास जी ने मुझे जो भी अपने कुटुम्ब तथा कुल के आचार बतलाए हैं उन सबका सावधानी से पालन करती हूँ। भिक्षा देना, पूजन, श्राद्ध, पर्वों पर पक्वान्न बनाना, माननीयों का सत्कार, सेवकों की देखभाल आदि सब सदा सावधानी से करती हूँ।’ ‘पतियों से बढ़कर सुख-सुविधा, उनसे उत्तम भोजन मैंने कभी स्वीकार नहीं किया। सासजी से, सौतों से तथा किसी गुरुजन से मैं कभी विवाद नहीं करती। मैं अपनी वीरमाता सत्यवादिनी सास की सेवा में प्रमाद नहीं करती। वस्त्र, आभूषण, भोजन में उनसे कभी विशेषता नहीं रखती।’ ‘पतियों से पहिले प्रात: उठती हूँ। उनके विश्राम के पश्चात सोती हूँ। बड़ों की सेवा में संलग्न रहती हूँ।’ ‘पहिले महाराज युधिष्ठिर नित्य बहुत अधिक ब्राह्मणों को स्वर्णपात्रों में भोजन कराते थे। सहस्त्रों गृहस्थ स्नातकों का भरण-पोषण करते थे। इनके राज-सदन में सहस्त्रों सेवक तथा सेविकाएँ थीं। मैं सबके नाम, रूप, गुण, कार्य तथा भोजन वस्त्रादि का पता रखती थी यह भी जानकारी रखती थी कि कौन किस काम में लगा है। क्या काम उसने कर लिया और क्या नहीं किया।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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