गोस्वामी श्रीहित हरिवंशचन्द्र जी
श्रीहितहरिवंश जी की रस भजन पद्धति के सम्बन्ध में श्रीनाभा जी महाराज ने कहा-
- श्रीराधा चरन प्रधान हृदय अति सुदृढ़ उपासी।
- कुंज केलि दंपती, तहाँ की करत खवासी।।
- सर्वसु महाप्रसाद प्रसिद्ध ताके अधिकारी।
- बिधि-निषेध नहिं दासि अनन्य उत्सव ब्रतधारी।।
- श्रीब्यास-सुवन पथ अनुसरै सोइ भलैं पहिचानिहैं।
- हरिबंस गुसाँई भजन की रीति सकृत कोउ जानिहैं।।
स्वकीया-परकीया, विरह-मिलन एवं स्व-पर-भेद रहित नित्यविहार-रस ही श्रीहितहरिवंश जी का इष्ट तत्त्व है। इन्होंने ‘श्रीराधासुधानिधि’ नामक अनुपम ग्रन्थ का निर्माण तो किया ही, इनकी व्रज भाषा में भी बहुत-सी रचनाएँ मिलती हैं, जो ‘हितचौरासी’ और ‘स्फुट वाणी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्होंने कहा है-
- सब सौं हित निषकाम मत बृंदाबन बिश्राम।
- (श्री) राधावल्लभलालको हृदय ध्यान, मुख नाम।।
- तनहि राखु सतसंग में मनहि प्रेम रस भेव।
- सुख चाहत हरिबंस हित कृष्ण कलपतरु सेव।।
श्रीहितहरिवंश प्रभु जी का वैराग्य बड़ा विलक्षण था। अर्थ तथ काम की बात ही दूर, यहाँ तो धर्म और मोक्ष में भी राग नहीं था।
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