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डाक्टर भगवानदासजी ने अपनी ‘Science of Social Organisation’ (सामाजिक व्यवस्था शास्त्र) नामक पुस्तक के पृष्ठ 347-348 में लिखा है –
‘Great Avataras have come in the past and will come again in the future, whose grand figures loom and names of might echo through the haze of the ages. Theya have come and will come to close great epochs and to open greater ones. Smaller Messiahs, Prophets, Messengers and saintly teachers have performed and will perform similar functions with regard to smaller cycles and phases of civilizations. But the innermost truth, the one burden of the teaching of all the one purpose of all this ever has been and ever shall be, by ever deeper yoga, to behold ever more fully the infinite glory of the Eternal Self.’
‘अर्थात पहले भी अनेक महान अवतार हो चुके हैं और भविष्य में होंगे जिनके लोकोत्तर विग्रहों तथा प्रभावशाली नामों को युगों से हम लोग स्मरण करने आते हैं। महान युगों के अन्त में और महत्तर युगों के प्रारम्भ में वे आते रहे हैं और आयँगे। युगों के अन्तर्वर्ती काल में और सभ्यता की मध्यवर्ती अवस्थाओं में इसी प्रकार का कार्य करने के लिये अवतारों से निम्न श्रेणी के लोग जिन्हें मसीहा, पैगम्बर, ईश्वरदूत तथा सन्त, महात्मा, आचार्य कहते हैं, आये हैं और आयँगे। किन्तु सबसे गूढ़ रहस्य, उन सबके उपदेश का सार तथा एकमात्र प्रयोजन यही रहा है और रहेगा कि गम्भीरतर योग के द्वारा शाश्वत-ब्रह्म की अनन्त महिमा को अधिकाधिक पूर्णता से देखा जाय’।
इसी सनातन नियम के अनुसार कलियुग के प्रारम्भ के ठीक पूर्व, जिसे ‘लोह के समान दृढ अहंकार का काला युग’ कहते हैं, अनेक मनुष्यों के हृदयों को अनेक प्रकार के सम्बन्धों के द्वारा अपने में युक्त करने के लिये स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के रूप में प्रकट हुए। नारद ने युधिष्ठिर से कहा था– ‘हे मानवो ! तुम लोग जिस किसी प्रकार से भी हो सके, अपना चित्त उस परमात्मा में लगाओ। मनीषी लोग श्रीकृष्ण को ‘आकर्षक’ कहते हैं, क्योंकि अपने नाम से वे सबकी आत्माओं को अपनी ओर खींच लेते हैं’[1]।
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