कृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मपत्र
नव-निधि जाके नाभि बसत हैं, मीन बृहस्पति केरी, उक्त संस्कृत श्लोक और म. सूरदास के इस पद के अनुसार भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की जन्म कुण्डली यह है– श्लोक और पद में ग्रह-नक्षत्रादि का साम्य है। किन्तु महात्मा सूरदासजी ने ग्रहों का फलादेश भी स्पष्ट कर दिया है। इस फलादेश का कोई अंश ऐसा नहीं जो श्रीकृष्णचन्द्र के चरित्र से मेल न खाता हो। सच पूछो तो उनके बृहत चरित्र को ज्योतिष के ब्याज से एक ही पद में देकर सूर ने सागर को गागर में भर दिया है। हां, एक बात की कसर अवश्य है और वह अन्त:करण में कुछ-कुछ खटकती है। महात्माजी ने आठवें पद्य में ‘पृथ्वी-भार उतारै निहचै’ इस वाक्य-खण्ड का उल्लेख करके समष्टिरूप में सब कुछ लिख दिया, किन्तु फलित-ज्योतिष के विद्वान इस बात पर प्रकाश डालने का अनुग्रह करें कि भागवत की कथा के अनुसार (जैसा कि जनश्रुति कहती है) छप्पन कोटि यादवों का संहार किन-किन ग्रहों का कुफल है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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