विषय सूची
कृष्णांक
श्रीकृष्ण के सार्वभौम उपदेश का दिग्दर्शन
4. रागद्वेष-वश स्वधर्म का त्याग निन्द्य है – सुन्दर रूप से अनुष्ठित पर धर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म भी उत्तम है। परधर्म का अवलम्बन कर जीवन बचाने की अपेक्षा अपने धर्म में रहकर मर मिटना भी अच्छा है। क्योंकि परधर्म इकलोक में अकीर्तिकर तथा परलोक में नरकप्रद होने से भय का कारण है। 5. कर्म करते हुए निष्पाप रहने का उपाय – भृत्य जैसे स्वामी में सर्व कर्मों का फल अर्पण करता हुआ कर्म करता है, ऐसे ही जो मनुष्य कर्म तथा कर्मफल को ईश्वर को अर्पण कर तथा अभिमान को छोड़ कर्म करता है, वह उसी प्रकार सब पापों से अलग रहता है, जिस प्रकार कमल का पत्र जल से ! 6. उत्तम योगी कौन है ? हे अर्जुन ! जो अपने साथ तुलना करके सब प्राणियों में सुख अथवा दु:ख को समान देखता है, वह योगी उत्तम है, यह मेरा मत है। अथवा सम्पूर्ण योगियों में जो श्रद्धावान योगी मुझमें लगे हुए अन्तरात्मा से निरन्तर मुझे ही भजता है वह मेरे मत में सबसे श्रेष्ठ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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