कृष्णांक
व्रज परिचय
भरतपुर विजेता लार्ड लेक इस व्रजभूमि की पवित्रता से बहुत अधिक प्रभावित हुए थे और उन्होंने फरमान निकालकर कभी गोवध न करने की आज्ञा जारी की थी। यही नहीं, उन्होंने तो इस भूमि में शिकार तक खेलने की मनाही कर दी थी और अब तक भी वही मनाही चली आ रही है। मथुरा और वृन्दावन के बीच में यत्र-तत्र उनके उस फरमान के शिलालेख एक फरमान सन् 1866 में जारी किया हुआ इधर-उधर गडा मिलता है। गोवध सम्बन्धी फरमान का पालन नहीं हो रहा है, इसलिये हिन्दुओं का परम कर्तव्य है कि चेष्टा करके गोवध बन्द कराने का प्रयत्न करे। एक बार प्रयत्न किया जा चुका है, पर इस बार ऐसा सामूहिक उद्योग करने की आवश्यकता है जो सफल होकर ही रहे। सर्व साधारण की जानकारी के लिये कर्नल लोक की निषेधाज्ञा का सरकारी हिन्दी अनुवाद नीचे दिया जाता है – लेख (सही अंग्रेजी में) रुस्त मेहरवान आगा, इसके सिवा और एक आवश्यक सूचना है। मथुरा में विश्रान्त घाट से जिसका माहात्म्य वर्णन ऊपर किया जा चुका है, यमुनाजी दिन–दिन दूरातिदूर पहुँचती जाती हैं। मथुरावासियों तथा धनी यात्रियों का परम धर्म है कि वे उद्योग करके उन्हें घाट पर ले आये और वह सदा उस घाट पर तथा अन्य घाटों पर, जिन पर अब तक वे हैं, बनी रहें। यदि ऐसा उद्योग न किया गया तो मथुरा की सारी शोभा नष्ट हो जायेगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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