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सेवाकुंज, निधिवन[1] कौमारीवन, राधावाला, गोविन्दबाग, वंशीवट आदि दर्शनीय स्थानों के अतिरिक्त, वहाँ से चलकर यमुना पार प्रथम खेलन वन है, जहाँ श्रीकृष्ण और राधाजी खेला करते थे। इसके आगे माटगांव है, जहाँ भगवान ने दही और माखन के माट बिखेरे और फोडे़ हैं। फिर यशोदा के डर से भागकर उपवन में जाकर छिपे हैं। जिस पर यशोदाजी ने उन्हें ढूँढते-ढूँढते कहा है– ‘नीतं यदि नवनीतं किमेतेन आतपतापितभूमौ माधव मा धाव मा धाव’। इसके आगे भाण्डीर वट है। यहाँ श्रीबलदेवजी ने प्रलम्बासुर को मारा है। यहाँ भाण्डीरकूप है जो बहुत पवित्र समझा जाता है। इसके आगे बिजौली गांव है जहाँ बलदेवजी तथा श्रीकृष्णजी का बगीचा है। उससे आगे भद्रवन है। वहाँ गौघाट है जहाँ भगवान मध्याह्नकाल में गायों को जल पिलाते थे। वहाँ मधुसूदन कुण्ड है जहाँ भगवान के रूठने पर गोपियों ने उन्हें मनाया है। इसके आगे मुंजाटवी (मूँजवन) है जिस वन में आग लग जाने से भगवान ने अग्निपान करके गायों और गोपों की रक्षा की थी। इसके आगे सुरीर गांव है जो सौभरि ऋषि का तपस्थल है। उसके पास डांगोली गांव है, जहाँ श्रीकृष्ण तथा राधा की बैठक है।
आगे गह्वरवन है, जहाँ यमुनाजी की झील है। झील के किनारे पिपरौली गांव है, जहाँ मानिक शिला है और इसके पास पन है, जहाँ भगवान ने बछडे़ चुराये हैं। यहाँ श्रीबलदेवजी और श्रीदामासखा की बैठक है। उसके पास लोहवन है, जहाँ कृष्ण कुण्ड है। यहाँ भगवान ने लोहासुर को मारा है। यहाँ सनकादिक ने तप किया है। इसके पास रावल उपवन है, जो राधाजी का ननिहाल तथा जन्म स्थान है। उसके आगे चन्दी-अनन्दी गांव है। ये दोनों देवियां नन्द के घर गोबर थापा करती थीं और इसी मिस से श्रीबलराम तथा श्रीकृष्ण के नित्य दर्शन किया करती थीं। इसके आगे रीडा गांव है, जिसे अब बलदेव गांव कहा करते हैं। यहाँ श्रीबलदेवजी की गौर मूर्ति न होकर श्याम मूर्ति है। यह बलदेवजी वज्रनाभ के पधराये हुए हैं। न जाने कैसे कालमहिमा से क्षीरसागर में बहुत दिन तक शयन करते रहे, और फिर किसी समय जगन्नाथदास साधु को स्वप्न दिया कि क्षीरसागर में शयन कर रहा हूँ, मुझे निकाल लो। तब उन्होंने निकालकर उन्हें कच्चे मन्दिर में विराजमान करा दिया। व्रज में वज्रनाभ की स्थापित की हुई यही एक मूर्ति है, शेष केशवदेव जी, गोविन्ददेव जी, हरदेव जी ये तीनों मूर्तियां बाहर पधार गयीं। कहते हैं कि बलदेवजी के मन्दिरों में से बहुत से भौंरे पैदा होकर औरंगजेब की फौज को दिक करने लगे। फिर इससे तंग आकर फौज भागकर चली गयी और इस प्रकार इस मन्दिर की रक्षा हो गयी।
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