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यहाँ पर श्रीराधाजी की सखियों ने उनके लिये फूलों की सेज बनायी है तथा फूलों के पंखे से उनका श्रम दूर किया है। यहाँ जावक के चिह्न हैं, इन नामें को देखने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह तीसरा वृन्दावन हैं। इससे आगे व्योमासुर की गुफा है। व्योमासुर गोप का रूप धारण कर श्रीकृष्ण तथा गोपालों के साथ राजाचोर का खेल खेलता हुआ खेल में सोते हुए गोपों को गुफा में डाला आता था। पीछे भगवान ने इसे मार डाला। इस गुहा से आगे मानसी कुण्ड तथा वाराहकुण्ड हैं, उसके बाद कनवारोगाम है जहाँ भगवान हिंडोला झूले हैं, इसके आगे बलदेवजी की लीलाभूमि ऊँचगाम है। यहाँ बलदेवजी का रासमण्डल तथा देहकुण्ड संयोग तीर्थ है। यही श्रीललिताजी का जन्म स्थान है। इससे आगे बरसाना या वृषभानुपुर है। यहाँ एक छोटी सी पहाड़ी है। यह वृषभानु और कार्तिजी की राजधानी है। यहाँ मानसरोवर है, जिसे मानोखवर कहते हैं, तथा यशोदाकुण्ड है। यहाँ जो छोटी पहाड़ी है वह ब्रह्माजी का रूप है। इसके जो चार शिखर हैं वे ही चार मुख हैं, (इसी प्रकार नन्दगांव की पहाड़ी शिवरूप तथा गोवर्धन विष्णुरूप है) और इसीलिये इसे ब्रह्मशानु भी कहते हैं।
इसके एक शिखर पर श्रीलाडिलीजी का मन्दिर है, दूसरे पर मान-मन्दिर (जहाँ भगवान ने मानवती राधा को मनाया था), तीसरे पर दानगृह और चौथे पर मोरकुटी। प्राचीन मंदिरों के अतिरिक्त जयपुर-नरेश का बनवाया हुआ एक सुन्दर नया मन्दिर भी है। जब सीढियों पर चढ़कर मन्दिर जाते हैं तो बीच में राधाजी के पितामह महिभानु का मन्दिर मिलता है। पहाड़ी के नीचे एक ओर को राधाजी की ललिता, विशाखा, चम्पकलता, रंगदेवी, चित्रलेखा, इन्दुलेखा, सुदेवी और तुंगविद्या इन आठ सखियों के आठ मन्दिर हैं। एक मन्दिर वृषभानुजी का है जिसमें वृषभानुजी, उनके भाई श्रीदामाजी तथा श्रीराधाजी की मूर्तियां हैं। बरसाने के दूसरी ओर एक छोटी पहाड़ी और है। इन दोनों पहाड़ियों की द्रोणी (खौ) में बरसाना बसा है। दोनों पर्वत जहाँ मिलते हैं वहाँ एक ऐसी तंग घाटी है कि एक मनुष्य भी कठिनाई से निकल सकता है। इस स्थान का नाम सांकरीखोर है। भादो सुदी अष्टमी से चतुर्दशी तक यहाँ बड़ा सुन्दर मेला लगता है और फाल्गुन सुदी 8, 9, 10 को होली की लीला होती है। मानमन्दिर और मोरकुटी के बीच में गह्वरवन है। बरसाने में सनाढ्य ब्राह्मण रूपराम कटोरे के बनवाये हुए महल तथा सरोवर बहुत हैं।
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